पूछते हैं वो तेरे दामन में क्या है ज़िन्दगी
हँस के कहती है कभी ये राज़ जाना किसने कहीं ???
मैने कहा :
मुझको मिलती है मगर दिखती नहीं क्यूँ ज़िन्दगी ?
बात सुनता हूँ सभी से, पर बोलती नहीं क्यूँ ज़िन्दगी ?
गुदगुदाती है कभी और मुस्कुराती है कभी ...
हर कदम हर पल नए नित रूप दिखलाती है क्यूँ ये ज़िन्दगी ?
सर चढ़ती है कभी और धुल चट्वाती कभी ..
चलने लगता हूँ जो मै कभी , तो दौड़ जाती क्यूँ ज़िन्दगी ?
ज़िन्दगी ने कहा
तू मुक्कदर का सिकंदर है और फकीर भी,
है कभी राजा कहीं का और फिर दरवेश भी ,
मै तो चंचल मनचली हूँ , टेहरना जानू नहीं ,
राज़ कैसे मै बतादूँ .....मौत पीछे है खड़ी !
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